कोरबा. शारदीय नवरात्रि के दौरान देवी दुर्गा की पूजा और उपासना के साथ गरबा और डांडिया खेलने की परंपरा का खास महत्व है। यह नृत्य न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि इसका देवी दुर्गा से गहरा धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव है। गरबा और डांडिया की उत्पत्ति गुजरात से हुई है, लेकिन आज इसे पूरे देश में नवरात्रि के दौरान सामूहिक रूप से खेला जाता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गरबा और डांडिया नृत्य देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच नौ दिवसीय युद्ध को दर्शाता है, जिसमें अंत में देवी दुर्गा की विजय होती है। यह नृत्य दुर्गा के साहस और शक्ति का प्रतीक है, और भक्त इसे देवी को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए करते हैं।
गरबा का शाब्दिक अर्थ है “गर्भ दीप,” जिसमें एक मिट्टी के कलश में दीप जलाकर देवी की पूजा की जाती है। इस दीप की हल्की रोशनी में भक्त सामूहिक रूप से नृत्य करते हैं। डांडिया नृत्य में दो या चार लोगों के समूह ताली बजाते हुए नृत्य करते हैं, जिसमें डांडिया (लकड़ी की छड़ी) का इस्तेमाल किया जाता है। इस नृत्य का उद्देश्य देवी दुर्गा और महिषासुर की लड़ाई का प्रतीकात्मक प्रदर्शन करना होता है।
कहा जाता है कि डांडिया की छड़ियों से उत्पन्न होने वाली ध्वनि सकारात्मक ऊर्जा का संचार करती है और जीवन की नकारात्मकता को समाप्त करती है। वहीं, गरबा नृत्य में महिलाएं तीन तालियों का प्रयोग करती हैं, जिससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा फैलती है।
कोरबा के शिवाजी नगर में गरबा डांडिया व दशहरा उत्सव समिति हर साल इस पावन पर्व का आयोजन करती है। इस वर्ष समिति के अध्यक्ष राजकुमार गांगुली और सचिव राजू पवार ने बताया कि गरबा और डांडिया के आयोजन में समृद्धि और आस्था का अनोखा संगम होता है। आयोजक मंडल के अन्य सदस्य, जैसे कोषाध्यक्ष शिवकुमार साहू और संयोजक शिव वैष्णव, इस बार के उत्सव को और भी भव्य बनाने की तैयारी में जुटे हैं।