छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में नगर निगम द्वारा सोनालिया पुल के आगे बनाए जा रहे मल्टीलेवल पार्किंग प्रोजेक्ट का कार्य लंबे समय से अधूरा पड़ा है, जिसे लेकर नगर निगम ने विकास कंस्ट्रक्शन कंपनी को जिम्मेदार ठहराया है। नगर निगम ने इस कंपनी को 22 जुलाई 2024 को एक साल के लिए काली सूची (ब्लैक लिस्ट) में डालते हुए, उसकी सुरक्षा जमा और प्रदर्शन गारंटी भी जब्त कर ली थी। इस आदेश के खिलाफ विकास कंस्ट्रक्शन कंपनी ने छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय, बिलासपुर में याचिका दायर की, जिस पर 10 सितंबर 2024 को सुनवाई हुई।
अधूरी मल्टीलेवल पार्किंग का विवाद
मल्टीलेवल पार्किंग के निर्माण की योजना कोरबा के नागरिकों के लिए एक बड़ी सुविधा के रूप में तैयार की गई थी, ताकि ट्रैफिक की समस्या को हल किया जा सके। लेकिन विकास कंस्ट्रक्शन कंपनी, जिसे इस परियोजना का निर्माण कार्य सौंपा गया था, ने कार्य को पूरा नहीं किया, जिससे यह प्रोजेक्ट लंबे समय से ठप पड़ा है। इस देरी और अधूरे कार्य को लेकर नगर निगम ने कंपनी पर सख्त कार्रवाई करते हुए उसे ब्लैक लिस्ट कर दिया था।
न्यायालय में याचिकाकर्ता के तर्क
विकास कंस्ट्रक्शन कंपनी के अधिवक्ता ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया कि नगर निगम द्वारा 22 जुलाई 2024 को पारित ब्लैक लिस्टिंग का आदेश कानूनी प्रक्रियाओं का उल्लंघन करता है। उन्होंने तर्क दिया कि कंपनी को सुनवाई का उचित अवसर नहीं दिया गया और बिना कारण बताओ नोटिस के कंपनी को काली सूची में डालने का आदेश जारी किया गया। अधिवक्ता ने कहा कि यह निर्णय नगर निगम द्वारा बिना पर्याप्त कारणों और ठोस सबूतों के लिया गया है।
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि कंपनी ने परियोजना में आई चुनौतियों और समस्याओं का समाधान प्रस्तुत किया था, लेकिन नगर निगम ने इसे नज़रअंदाज़ करते हुए जल्दबाजी में यह कठोर निर्णय ले लिया। इसके अलावा, कंपनी द्वारा दिए गए स्पष्टीकरण पर नगर निगम ने समुचित विचार नहीं किया, जिससे उसे न्यायिक सुनवाई का उचित अवसर नहीं मिला।
नगर निगम का पक्ष
वहीं, नगर निगम के अधिवक्ता ने अदालत में दिए गए तर्कों का खंडन किया। उन्होंने कहा कि विकास कंस्ट्रक्शन कंपनी को सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन करते हुए सुनवाई का पूरा अवसर दिया गया था। नगर निगम ने यह सुनिश्चित किया था कि कंपनी को अपनी स्थिति स्पष्ट करने का मौका मिले, जिसके बाद ही 22 जुलाई 2024 का आदेश पारित किया गया था।
अधिवक्ता ने कहा कि परियोजना के अधूरे रहने और देरी के कारण नगर निगम को कोरबा के नागरिकों को दी जाने वाली सुविधा में बड़ी बाधा का सामना करना पड़ा। उन्होंने कहा कि विकास कंस्ट्रक्शन कंपनी की लापरवाही और गैर-जिम्मेदाराना रवैये ने नगर निगम को यह सख्त कदम उठाने के लिए मजबूर किया।
निगम के अधिकारियों पर लगातार अनैतिक कार्यवाही के आरोप
कोरबा नगर निगम अधिकारियों पर लगातार अनैतिक कार्यवाही करने के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। इसी वर्ष जुलाई में दो ठेकेदारों को नियम विरुद्ध तरीके से काली सूची में डालने का मामला सामने आया था। हालांकि, इन ठेकेदारों के खिलाफ जारी आदेशों को अगले ही दिन निगम आयुक्त प्रतिष्ठा ममगई ने वापस ले लिया था। इसके बाद सड़क निर्माण के एक ठेकेदार के खिलाफ पिछली तारीख में नियम विरुद्ध आदेश पारित कर उसकी राशि राजसात कर ली गई, जिसे लेकर कूटरचना के आरोप लगे। इस मामले की सुनवाई 23 सितंबर 2024 को उच्च न्यायालय में होनी है। अब मल्टीलेवल पार्किंग का मुद्दा भी उसी प्रकार का दिखाई दे रहा है, जिससे नगर निगम की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं।
न्यायालय का निर्णय और अगली कार्रवाई
सुनवाई के बाद छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने नगर निगम, कोरबा से अपना पक्ष स्पष्ट करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। न्यायालय ने आदेश दिया कि नगर निगम इस अवधि के भीतर अपना रिटर्न-शपथपत्र दाखिल करे। इसके बाद याचिकाकर्ता को प्रत्युत्तर-शपथपत्र दाखिल करने के लिए भी दो सप्ताह का समय दिया जाएगा। इसके बाद मामले को पुनः सूचीबद्ध किया जाएगा, जिसमें दोनों पक्षों के तर्कों पर आगे विचार किया जाएगा।
मामले का प्रभाव
यह मामला केवल एक कंपनी के ब्लैक लिस्ट होने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कोरबा नगर निगम के बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स की प्रभावशीलता और पारदर्शिता पर भी सवाल उठाता है। मल्टीलेवल पार्किंग परियोजना का अधूरा रह जाना नगर निगम की योजनाओं और ठेकेदारों के साथ होने वाले समझौतों पर ध्यान केंद्रित करता है। यदि इस मामले का उचित समाधान नहीं निकाला जाता है, तो यह कोरबा जैसे महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर की विकास परियोजनाओं में व्यवधान पैदा कर सकता है, जिसका असर नागरिकों की जीवनशैली और शहरी बुनियादी ढांचे पर पड़ेगा।
अब सभी की नज़रें न्यायालय के अगले आदेश पर टिकी हैं। नगर निगम को अपने कदमों को उचित ठहराने के लिए ठोस सबूत प्रस्तुत करने होंगे, ताकि ब्लैक लिस्टिंग के आदेश की वैधता साबित की जा सके। वहीं, विकास कंस्ट्रक्शन कंपनी को अपनी साख और व्यवसाय को बनाए रखने के लिए न्यायालय में अपना पक्ष मजबूती से रखना होगा। यह मामला एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है, जो छत्तीसगढ़ के निर्माण कंपनियों और सरकारी निकायों के बीच होने वाले अनुबंधों और उनके अनुपालन पर बड़ा प्रभाव डाल सकता है।
न्यायाधीश
– न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु – मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा