परिचय
तीज पर्व, हिंदू धर्म में विशेष स्थान रखने वाला एक प्रमुख पर्व है जिसे मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। यह पर्व पति की लंबी आयु, समृद्धि, और सुख-शांति के लिए व्रत और उपासना के रूप में मनाया जाता है। तीज के तीन प्रकार होते हैं – हरियाली तीज, कजरी तीज, और हरतालिका तीज। हरतालिका तीज सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।
पूजा विधि:
व्रत की तैयारी: तीज व्रत रखने वाली महिलाएं एक दिन पहले (सिंजारा) सुंदर श्रृंगार करती हैं और मेहंदी लगाती हैं। पूजा के दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं।
पूजा का समय: प्रातः काल या संध्या समय शिव-पार्वती की पूजा की जाती है। इस दौरान व्रती महिलाएं मिट्टी या धातु की शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करती हैं।
पूजन सामग्री: पूजा में दूध, दही, घी, शहद, चीनी, फल, फूल, बेलपत्र, धूप, दीप, चंदन, हल्दी, और मिठाई की आवश्यकता होती है। श्रृंगार की सामग्री भी शिव-पार्वती को अर्पित की जाती है।
विधिवत पूजा: सबसे पहले भूमि को शुद्ध कर शिवलिंग और माता पार्वती का ध्यान कर फूल और जल चढ़ाया जाता है। इसके बाद व्रती महिलाएं तीज माता का ध्यान करते हुए व्रत कथा सुनती हैं। आरती के बाद भोग अर्पित किया जाता है।
व्रत कथा: हरतालिका तीज की व्रत कथा के अनुसार, माता पार्वती ने शिवजी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इस कथा का श्रवण व्रत की पूर्णता मानी जाती है।
लाभ
वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि: यह व्रत विवाहित महिलाओं के लिए विशेष होता है। कहा जाता है कि इस व्रत को रखने से पति की लंबी आयु, सुख-शांति और समृद्धि प्राप्त होती है।
अखंड सौभाग्य: मान्यता है कि जो महिलाएं इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पारिवारिक सुख और शांति: तीज व्रत से न केवल पति की लंबी उम्र होती है, बल्कि पूरे परिवार में सुख और शांति का वातावरण बना रहता है।
शारीरिक और मानसिक शुद्धि: निर्जला व्रत से मन और शरीर की शुद्धि होती है, जिससे आत्मिक बल और धैर्य में वृद्धि होती है।
व्रत के दौरान पाठ: तीज के दौरान शिव-पार्वती के भजनों का पाठ करना अत्यंत शुभ माना जाता है। कुछ महिलाएं इस दिन ‘शिव चालीसा’ या ‘महामृत्युंजय मंत्र’ का जाप करती हैं।
हरतालिका तीज की पौराणिक कथा
बहुत समय पहले की बात है, हिमालयराज की पुत्री पार्वती माता शिवजी को अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती थीं। इसके लिए उन्होंने कठोर तपस्या की। माता पार्वती ने तपस्या के लिए घने जंगल में जाकर बिना जल और भोजन के वर्षों तक तप किया। उनकी तपस्या को देखकर उनके पिता, हिमालयराज, चिंतित हो गए और उन्होंने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु के साथ करने का निर्णय लिया, क्योंकि वे मानते थे कि भगवान विष्णु सर्वश्रेष्ठ हैं और उनकी पुत्री के लिए सर्वोत्तम वर हैं।जब माता पार्वती को इस बात की जानकारी मिली कि उनके पिता भगवान विष्णु के साथ उनका विवाह कराना चाहते हैं, तो वे अत्यंत चिंतित हो गईं। उन्हें विश्वास था कि भगवान शिव ही उनके सच्चे पति हैं, और उनके बिना वे किसी और से विवाह नहीं करना चाहती थीं। इस कठिन परिस्थिति से निकलने के लिए पार्वती की सहेली ने उन्हें जंगल में ले जाकर छुपा दिया। वह दिन भाद्रपद शुक्ल तृतीया का था, और उसी दिन से हरतालिका तीज का व्रत प्रारंभ हुआ।जंगल में माता पार्वती ने मिट्टी से शिवलिंग बनाकर पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की आराधना की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके सामने प्रकट हुए और उनसे वर मांगने को कहा। माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। भगवान शिव ने उनकी तपस्या और श्रद्धा को देखकर उनका यह वरदान स्वीकार किया और उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया।
इस प्रकार, माता पार्वती ने अपनी कठिन तपस्या और विश्वास के बल पर भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। तभी से हर साल इस व्रत को विवाहित और अविवाहित महिलाएं अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए रखती हैं। विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की कामना करती हैं, जबकि अविवाहित लड़कियां अच्छे वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत करती हैं।
हरतालिका तीज की यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्ची आस्था, श्रद्धा, और समर्पण से कोई भी मनोकामना पूरी हो सकती है, चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों।