बालको दुर्गा पूजा समिति की जनरल सेक्रेटरी, रौनी पॉल, ने बताया कि समिति का गठन 1970 में हुआ था, और तब से 54 वर्षों से यह पूजा पारंपरिक रूप से मनाई जा रही है। यह पूजा बालको के काली मंदिर और बंगाली कल्चरल एसोसिएशन से गहराई से जुड़ी हुई है, जो कि समिति के सदस्यों और उनके पूर्वजों के मार्गदर्शन से आगे बढ़ी है।
रौनी पॉल ने बंगाल के कठिन दौर की यादें ताजा कीं, जब 1930 और 1940 के दशक में वहां के लोग गरीबी से जूझ रहे थे। आर्थिक तंगी के बावजूद, बंगाली समाज के लोग दुर्गा पूजा मनाने के लिए अपने घर के पुराने कपड़े और टूटी-फूटी चीजों को पंडाल सजावट के लिए इस्तेमाल करते थे। यह त्योहार उनके लिए न केवल आस्था का प्रतीक था, बल्कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का एक माध्यम भी था।
इस साल बालको दुर्गा पूजा समिति ने उसी पारंपरिक उत्सव की झलक को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। पुराने ढंग से पंडाल सजावट और पूजा विधि को पुनः प्रस्तुत किया गया है, जिससे युवा पीढ़ी को भी यह समझने का अवसर मिल सके कि कैसे उनके पूर्वजों ने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने सबसे बड़े त्यौहार को भव्यता से मनाया।
यह पूजा सिर्फ आस्था का उत्सव नहीं, बल्कि संस्कृति, त्याग और समर्पण की जीवंत मिसाल बनकर हर वर्ष नई ऊंचाइयों को छू रही है।