नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट (NI Act) की धारा 138 चेक बाउंस से जुड़े अपराधों को नियंत्रित करती है। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने इस धारा के तहत एक ऐसा निर्णय दिया है, जो कई मामलों में आरोपित को राहत प्रदान कर सकता है। इस विषय पर कोरबा जिले के अधिवक्ता रघुनन्दन सिंह ठाकुर ने विशेष बातचीत में बताया कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने चेक बाउंस के मामलों में नई व्याख्या प्रस्तुत की है, जिससे बचाव के नए आधार बन सकते हैं।
धारा 138 के तहत अपराध की प्रमुख शर्तें
चेक बाउंस को अपराध मानने के लिए निम्नलिखित शर्तों का पूरा होना आवश्यक है:
1. चेक मौजूदा ऋण या देयता को चुकाने के लिए जारी किया गया हो।
2. चेक बाउंस होने पर शिकायतकर्ता ने कानूनी नोटिस निर्धारित समय सीमा में भेजा हो।
3. नोटिस के बावजूद चेक जारीकर्ता ने भुगतान न किया हो।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: मामला और संदर्भ
मामला: इंडस एयरवेज प्राइवेट लिमिटेड बनाम मैग्नम एविएशन प्राइवेट लिमिटेडइस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि चेक किसी माल या सेवा की आपूर्ति के लिए जारी किया गया है और वह आपूर्ति नहीं हुई है, तो चेक बाउंस को NI Act की धारा 138 के तहत अपराध नहीं माना जाएगा। अधिवक्ता रघुनन्दन सिंह ठाकुर के अनुसार, यह निर्णय विशेष रूप से व्यापारिक मामलों में चेक जारीकर्ताओं को अनावश्यक कानूनी जटिलताओं से बचाने में सहायक होगा।
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि NI Act की धारा 138 तभी लागू होती है, जब चेक मौजूदा ऋण या देयता के लिए जारी किया गया हो। यदि माल या सेवा की आपूर्ति नहीं हुई है, तो चेक बाउंस अपराध नहीं होगा। कोरबा के अधिवक्ता रघुनन्दन सिंह ठाकुर के अनुसार, यह फैसला कानूनी प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और न्यायसंगत बनाने में महत्वपूर्ण कदम है।